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मदरसा हिफ्जुल इस्लाम में जोश खरोश से मनाया गया योम-ए-जम्हूरिया

इमाम ए खतीब जामा मस्जिद के इमाम मुफ्ती मोहम्मद नासिर कासमी ने फहराया तिरंगा

जेवर। मौहल्ला खतीबान पुरानी टंकी वाला स्थित मदरसा हिफ्जुल इस्लाम में भी 75वें योम-ए-जम्हूरिया गणतन्त्र दिवस के मौके पर कार्यक्रम का आयोजन कर जोश-ओ-खरोश के साथ तिरंगा फहराया गया और देशभक्ति के तराने गुनगुनाए गए साथ ही जंग-ए-आजादी में मदरसों द्वारा निभाए गए किरदार पर रोशनी डाली गयी।
मौहल्ला खतीबान पुरानी पानी की टंकी वाला स्थित मदरसा हिफ्जुल इस्लाम में 75वें योम ए जम्हूरिया गणतंन्त्र दिवस के मौके पर इमाम-ए-खतीब जामा मस्जिद के इमाम मौहम्मद नासिर कासमी द्वारा तिरंगा फहराया गया। इस दौरान मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों द्वारा देशभक्ति के तराने गुनगुनाये जिन्होंने सामने बैठे लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। कार्यक्रम को खिताब करते हुए मुफ्ती मौहम्मद नासिर कासमी ने कहा कि आज आजादी के साथ पूरा देश योमे जम्हूरिया का 75वॉं पर्व मना रहा है यह दिन हम लोगों को ऐसे ही नहीं मिला हमारे बुजुर्गों ने इसके लिए अपनी हजारों जानें गवायीं हैं अंग्रेज इस देश से आसानी से नहीं गये वल्कि हमारे आलिमों ने उन्हें भगाने के लिए सैंकड़ों तहरीकें चलाईं थी जिस वजह से अंग्रेजों ने हमारे आलिमों को सख्त सजायें देकर तरह तरह की सख्त यातनायें दी थीं मगर हमारे आलिमों ने अंग्रेजों की यातनाओं की कोई परवाह नहीं की इस देश की आजादी की खातिर अंग्रेजों द्वारा दी गयीं सख्त सजायों व यातनाओं से नहीं डरे और अंग्रेजों के आगे सिर नहीं झुकाया और अपनी जानों की परवाह किए वगैर उनके खिलाफ एक चटान की तरह डटे रहे तब कहीं जाकर यह देश आजाद हो सका। उन्होंने कहा कि जंग-ए-आजादी की शुरूआत 1857 से वल्कि 1754 में ही हो गई थी जिसकी शुरूआत नबाव सिराजुददौला के नाना अलीवर्दी खॉं द्वारा की गई थी जिनके बाद उनके नवासे (धेवते) सिराजुददौला ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग-ए-आजादी की लड़ाई का मोर्चा संभाला था 1757 में नबाव सिराजुददौला के शहीद होने के बाद टीपू सुल्तान ने जंग-ए-आजादी की लड़ाई की कमान को पूरी ताकत से संभाल लिया टीपू सुल्तान के शहीद होने के बाद अंग्रेज जनर्रल हार्स से उनकी लाश पर खड़ा होकर कहा था कि आज से हिन्दुस्तान हमारा है। उन्होंने कहा 1754 से लेकर 1947 तक उलेमाए-देवबन्द द्वारा जंग-ए-आजादी में दी गयीं बेसुमार कुरबानियों को भुलाया नहीं जा सकता जंगे आजादी की शमा को आगे बढ़ाने के लिए 1803 में उस वक्त सबसे बड़े आलिम ए दीन शाह अब्दुल अज़ीज मोहदिदस देहलवी ने फतवा देकर कहा थ कि हिन्दुस्तान के मुसलमानों जिस तरह तुम पर पांच वक्त की नमाज पढ़ना फर्ज है आज से तुम पर अंग्रेजों की फौज में शामिल नहीं होकर उनके खिलाफ जहाद करना भी फर्ज है जिसके बाद उनकी तमाम प्रोपरटी अंग्रेजों ने कुर्क कर ली और उनको धोखे से जहर दे दिया जिससे उनके जिस्म पर सफेद निशान पड़ गए। इसके बाद 1832 में अंग्रेजों से हुई जंग में हारने के बाद 1857 में मजबूती के साथ अंग्रेजों से जंग हुई जिसमें मौलान कासिम नानौतवी मौलाना रसीद अहमद गंगोही मौलाना मजहर अली नानौतवी मौलाना अशरफ अली थानवी हाजी इमदाद उल्ला मुहाजिर मक्की मौलाना अंजर शाह कशमीरी हाफिज जामिन शहीद जैसे अनेक आलिम-ए-दीन देवबन्द ने शामली के मैदान में अंग्रेजो से जमकर मुकाबला किया जिसमें कई हाफिज आलिम शहीद हुए मगर इस लड़ाई में उन्होंने अंग्रेजों की कमर तोड़कर रख दी और अंग्रेज इस लड़ाई से समझ गया उन्हें हिन्दुस्तान से जाना होगा अंग्रेज शामली की मैदान उलेमाए देवबन्द से हुई अपनी करारी हार को छिपाने के लिए यहां से जाने से कतराता रहा जिसके सबब हिन्दुस्तान के अंग्रेज बायसराय ने मलिका विक्टोरिया के हुजूर हिन्दुस्तान के मदरसों को बन्द कराने का प्रस्ताव पास कर उलेमाओं को पकड़-पकड़ कत्ल किया जाने लगा जिसके बाद शैखुल हिन्द मौलान महमूद हसन देवबन्दी अंग्रेजों के खिलाफ रेशमी रूमाल की तहरीक चलाई जिनकी तहरीक में महात्मा गांधी जैसे अनेक देशवासी जंग-ए-आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। इस तरह अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई दो सौ से ढ़ाई सौ साल तक लड़ी गई थी जिसके बाद यह देश आजाद हो सका। मदरसा हिफ्जुल इस्लाम में आयोजित 75वें योमे जम्हूरिया कार्यक्रम के मौके पर इमाम-ए-खतीब मुफ्ती मौहम्मद नासिर कासमी ने आजादी के दीवाने कार्यक्रम में पूर्व चेयरमेंन धर्मेन्द्र अग्रवाल वर्तमान चेयरमेंन नारयण माहेश्वरी आदि ने भाग लिया। इस मौके पर पूर्व सभासद चौ0 मुस्तफा खॉं यूनुस मेम्बर वकील उस्ताद रहीस कुरैशी वकील पहलवान शमशाद अल्वी हनीफ चौकड़ात हाफिज इफराहीम मौलाना जाकिर मुफ्ती नदीम कारी अली मौहम्मद मौलाना इमरान अब्दुल अजीज लियाकत अल्वी सहित सैंकड़ों लोग मौजूद रहे।

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