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जंगे आजादी में दी उलेमाओं और मुसलमानांे की कुर्बानियों को भुलाया नहीं जा सकता

देशभर में 15 अगस्त व 26 जनवरी दो तारीख़ों को दी जाती है अहमियत

जेवर। (जेवर न्यूज़) आजाद भारत में 15 अगस्त एवं 26 जनवरी इन दो तारीखों को बड़ी अहमियत दी जाती है क्योंकि 15 अगस्त को देश आजाद हुआ और 26 जनवरी को मुल्क जम्हूरी बना क्यौकि इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था। इसी लिए समस्त भारतवासी हिंदू-मुस्लिम सिख इसाई इस दिन झंडा फहरा कर आजादी की खुशी का इजहार करते हैं। मदरसा हिफ्जुल इस्लाम में योम-ए-जम्हूरिया के मौके पर खिताब करते हुए जामा मस्जिद के शाही इमाम मुफ़्ती मौहम्मद नासिर कासमी ने कहा कि जहां हम जवाहर लाल नेहरू महात्मा गांधी जी एवं चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह जैसे आजादी के फ्रीडम फाइटरों को याद करते हैं तो वहीं हमें उन लोगों के बारे में भी जान लेना चाहिए जिन्होंने अपनी कुर्बानियॉं देकर और अपना खून बहा कर इस मुल्क को अंग्रेजों के चुंगल से आजाद कराया।
उन्होंने कहा कि अंग्रेज यहां बिजनेस करने के इरादे से आया था मगर आहिस्ता आहिस्ता पूरे मुल्क पर उसने कब्जा कर लिया और पूरे देश को गुलाम बना लिया जिसके खिलाफ सबसे पहले सन 1754 में नवाब सिराजुद्दौला के नाना मैदान-ए-जंग में आते हैं उनके बाद सन 1757 के अंदर फिर नवाब सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के बीच मुकाबला होता हैं और यह मुकाबला चलता रहता है वहीं सन 1792 ईस्वी में हजरत टीपू सुल्तान शहीद शेर ए मैसूर मैदान में आते हैं। अंग्रेजों से जंग करते हैं और अंग्रेजों के छक्के छुड़ाते हैं 1799 के अंदर अपनों की गद्दारी की वजह से टीपू सुल्तान श्री रंगापटनम के अंदर शहीद हो जाते हैं। इसके बावजूद भी उनकी दहशत इतनी होती है कि अंग्रेज उनके पास जाने से डरता है और तीन दिन के बाद जनरल लॉर्ड हॉर्स उनकी लाश के पास जाता है और चारों तरफ से देखता है कि वाकई टीपू सुल्तान पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं तो जनरल हॉर्स ने टीपू सुल्तान शहीद की लाश पर खड़े होकर कहा था कि आज से हिंदुस्तान हमारा है और फिर पूरे मुल्क पर कब्जा कर लिया इसके बाद सन 1803 में के उस वक्त के सबसे बड़े आलिम शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहला फतवा देते हैं कि मुसलमानो आज से यह मुल्क गुलाम हो चुका है लिहाजा इसको आजाद कराना हर मुसलमान की जिम्मेदारी है। इस फतवे का देना था कि पूरे मुल्क में अंग्रेजों के खिलाफ अलमे बगावत बुलंद हो गया और उलेमा और मुसलमान मैदान में आ गए और मुकाबला करते रहे कई जंगे लड़ी जिनमें हार का भी सामना करना पड़ा फिर 1857 के अंदर शामली के अंदर अंग्रेजों से मुकाबला होता है जिसके अंदर मौलाना कासिम नानोतवी हाफिज जामिन शहीद मौलाना याकूब ननौतवी मौलाना मजहर नानोतवी हाजी इमदादुल्लाह मुहाजिर मक्की शेखुल हिंद मोलना महमूद हसन देवबंदी मौलाना हुसैन अहमद मदनी सरे फेहरिस्त हैं। इनके अलावां और भी बहुत बड़े-बड़े उलमाओं ने इस जंग के अंदर शिरकत की जिसके अंदर इनको सकिश्त हुई लेकिन एक तरीके से यह सकिस्त नहीं फतह थी। क्योंकि इस जंग के बाद अंग्रेजों के पांव उखड़ चुके थे फिर अंग्रेजों ने उलमाओं को ढूंढ ढूंढ कर फांसी के तख्ते पर चढ़ाना शुरू कर दिया और तकरीबन एक लाख उलमाओं को सूली पर चढ़ा दिया गया और 5 लाख मुसलमान को फांसी दे दी गई इतनी कुर्बानियां देने के बाद यह मुल्क आजाद हुआ इसलिए हमें अपने उन असलाफ को याद करना चाहिए कि जिन्होंने इतनी कुर्बानियां देने के बाद इस मुल्क को आजाद कराया है आज हम और आप जो यह दिन देख रहे हैं खुशी मना रहे हैं यह सब उलमाओं की और हमारे मुसलमान की देन है और हिंदू भाइयों की भी कुर्बानियों का नतीजा है। इस मौके पर पूर्व सभासद चौधरी मुस्तफा खॉं ने मौजूद लोगों से अपील की कि वह अपने बच्चों को दुनियावी तालीम के साथ साथ दीनी तालीम भी दिलायें दीनी तालीम से बच्चों के अन्दर समाज में जीने का सऊर व छोटे बड़े का आदर सत्कार करने की तमीज़ पैदा होती है वक्त के हिसाब से दुनियवी तालीम दिलाना भी बहुत जरूरी है क्यौंकि दुनियावी तालीम के वगैर हम दुनियावी तरक्की में पीछे रह जाते हैं और दीनी तालीम के वगैर समाज में जीने का सलीका नहीं आता उन्होंने कहा कि आज बच्चों को ज्यादा से ज्यादा शिक्षा दिलाने की आवश्यकता है। योमे आजादी के मौके पर देशभक्ति के नगमे गुनगुनाने वाले बच्चों को इनाम देकर उनकी हौंसला अफ्जाई की। इस मौके पर जामा मस्जिद के मुतबल्ली हाजी सईद फौजी आसमौहम्मद अब्दुल अजीज कुरैशी आसमौहम्मद कुरैशी अल्ताफ कुरैशी शाकिर मुंशी जी मौहम्मद खालिद अब्बासी हाजी हारून खॉं हाजी अल्लाह बख्श रिटायर पोस्टमेंन सहित साबिर अलीमुददीन पेटर सहित काफी लोग मौजूद रहे।

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